विदेशी भाषाओं की आंधी में, स्वदेशी ना भूल जाओ - Poem by Vanshika sharma



विदेशी भाषाओं की आंधी में, स्वदेशी ना भूल जाओ,

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।


स्वरों , व्यंजनों, मात्राओं का, अद्भुत है यह मेल ,

इसी हिंदी में सीखा हमने ,बोलना सुनना और खेल,

उच्चारण आधारित लेखन से, सिद्ध हिंदी की वैज्ञानिकता,

जैसा लिखना वैसा बोलना, दे सरलता की प्रमाणिकता,

तुलसी मीरा सूर कबीर की धरोहर ना भूल जाओ।

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।


'वंदे मातरम' के दीपक से, स्वतंत्रता की ज्वाला जगाई थी,

स्वामी विवेकानंद के शब्दों ने, हिंदी की शक्ति दिखाई थी,

अत्यंत समृद्ध संपन्न है , गौरवशाली हिंदी का इतिहास,

पश्चिम के पथ पर चलकर , न करो इसका तुम उपहास,

कई बोली और भाषाओं की जननी को ना भूल जाओ।

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।


बुद्धिजीवी आज ना कर पाए, उनसठ-उनहत्तर में अंतर,

अपनी भाषा ना शुद्ध लिख पाएं, कैसा यह विदेशी मंतर,

पढ़े लिखे हो कर भी यदि, अनपढ़ की जुबानी ना समझ पाओगे,

किस अर्थ से फिर तुम, स्वयं को राष्ट्रभक्त कहलाओगे,

हेलो-हाय के आडंबरो में 'नमस्ते' ना भूले जाओ।

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।



मात्रा ,अनुस्वार, वर्ण, हलंत की, अगर ना कर पाओ पहचान,

समझ लेना कि खो चुके हो, शिक्षित होने की शान,

पश्चिमी सभ्यता में बहकर, जो अपनी भाषा ना जान पाओगे,

दादा-दादी, नाना-नानी के फिर किस्से कैसे समझ पाओगे,

स्वभाषा की गरिमा और शालीनता ना भूल जाओ।

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।


'अ' अनपढ़ से 'ज्ञ' ज्ञानी तक, जीवन का सार सिखाएं,

भारतीय संस्कृति के आदर्शों का, स्वभाषा से मान बढ़ाएं,

एक भाषा के एक डोर से, बंधे समाज का प्रत्येक वर्ग,

प्रत्येक साक्षर को ज्ञात हो, क्या है संज्ञा सर्वनाम रस और उपसर्ग,

स्वभाषा, स्वदेश प्रेम की भावना ना भूल जाओ।

आओ भारतीयों, आगे बढ़कर हिंदी का मान बढ़ाओ।



Web Title: Poem by Vanshika sharma

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