अधिकार है पाना सम्मान- Priyanka Yadav

 नारीशक्ति

स्वरचित कविता (अधिकार है पाना सम्मान ।)


   खैरात नहीं मांगी मैंने,अधिकार है पाना सम्मान

    लुटाती सब पर अपनी निश्चल ममता

    फिर भी मिलता मुझे क्यों अपमान?

   मैं साहसी हूं,शक्ति हूं

   खुद का करती सशक्तिकरण 

   तुम क्या दोगे सहारा मुझको ?

    टिका हुआ है विश्व संतुलन मुझ पर

  

    जीते हो जो जीवन

    मैं ही उसका आधार

    प्रेम प्रफुल्लित होता मुझमें लिए हुए करुणा की धार

    नदिया सी मैं चंचल तुमको देती हूं जीवनदान

   न न, तनिक भी तुमको होना ये आभास

   अभिमान भरे शब्द नहीं है मेरे

    यह मेरे स्वाभिमान की लाज


    कहां कम हूं मैं किसी से

    जरा देखो नजरें उठाकर चारों और अपने

    नया जीवन मै हूं देती

    पालन पोषण हूं करती

    रिश्तो की एक एक मोती को संजोए रखना

    चुनौतियों से भरे पथ पर मुस्कुरा कर चलना

    हर कर्तव्य धर्म को मैं अपने निभाती

    अपनी तकदीर मैं खुद ही लिखती जाती

    

    नहीं देती उदाहरण तुम्हें मैं इतिहास का

     जो बीती , सो बात गई

    पर जो सत्य है ,वो सत्य है

    पराधीन मुक्ति की चिंगारी

    अब भी मुझ में विद्यमान है

    नये युग की नई स्त्री हूं

    स्वाविलंबी, स्वाभिमानी, साहस से परिपूर्ण 

    खैरात नहीं मांगी ,अधिकार है पाना सम्मान।


                                                प्रियंका यादव

   



Web Title: Poem by Priyanka Yadav


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