नारी हूं मैं कोई सामान नहीं, क्यूँ दुनिया की नजर में मेरा कोई स्वाभिमान नहीं.
पुरुषत्व में भी कई समस्याएं हैं करना कभी अभिमान नहीं कि नारी हूं मैं कोई सामान नहीं.
पुरुष में कोई घर त्यागे तो बुद्ध बन गए,
और अगर नारी घर त्यागे तो कई लानछन लगा दिए जाएंगे.
फिर अग्नि परीक्षा का तमाशा होगा,
लोगों की जुबान पर नारियों का परिभाषा होगा
उठाकर चरित्र पर सवाल फिर देश निकाला होगा.
नारी किसी खेल का खिलौना नहीं,
की खेल कर लोग कह सके कि
बस अब इस खिलौने का अरमान नहीं
कब समझेंगे लोग कि नारी हूं मैं कोई सामान नहीं.
मेरे आबरू को जब नोचा जाता
मुझसे ही सवाल पूछा जाता की,
क्यूँ पहनती हो छोटे कपड़े?
तो क्या कपड़े से ही पुरुषत्व की नीयत उभरकर निकलती,
और अगर ऐसा है तो 5 साल की बच्ची ने क्या पहन रखा की उसका बदन भी नोचा जाता.
सुनो घिन आती है मुझे उन सोंच पर की
सच कहूँ तो तुममे कोई ज्ञान नहीं
और नारी हूं मैं कोई सामान नहीं.
तथाकथित इस समाज में दो रीतियां चलती आयी हैं
पुरुष बीके तो दूल्हा, और नारियां वैश्या कलाई है.
बस अब नहीं ये अपनी सोंच अब तुम ही रख लो
क्यूंकि अब तुम्हारी नहीं, हमारी बारी आयी है
क्यूँ हर बार मैं सीता बनूँ
चुप होकर तुम्हारी बात सुनूँ
अब खुद से मैं पापियों के नाश के लिए रौद्र रूप धारण करुँगी, फिर लोग समझेंगे कि नारी होना कोई अपमान नहीं और नारी हूं मैं कोई सामान नहीं.
Web Title: Poem by Vaishali Kumari
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