"भारत था विश्वगुरू भारत ही विश्वगुरू आवाज ये बुलंद करो
चाईना के चाकाचौंध में ना पड़ मन को तो मन में शिकंज करो
अपना भारत बनाने में तुम्हारी बराबर की रहती है भूमिका
सरकारों पर रोना छोड़ो लेना समान अब ड्रैगन का बंद करो
हम हैं निर्माता हम पीछे ना रह पायेंगे
भारत के वीर धूल उसको चटायेगे
हमसे है जीता हमसे ही व्यापार है
स्वदेशी बन अब उसको बतायेंगे
हिम खंडो पर रहते जो अपनें हैं उनका भी परिवार है
उनके भी परिजन बदौलत उन्ही अपना भी घरबार है
जिनके ऐपों पर बैठ घर ऊँगली फेरते रहते हो रात दिन
उसी ड्रैगन के कारण अपनें बेटों का जीवन वहाँ दुश्वार है
कितना भी कह लो खोटे की नीयत रहती खोटी
डटे अपनें वीर वहाँ खाते तुम यहाँ चैन की रोटी
झूठ समझते हो अब ना ठंडा रहता हिमालय है
सच पूछो तो अब आग उगलती है हिमों की चोटी
अभिषेक द्विवेदी
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