हे धरा के पुत्र तुमको आज माटी है पुकारे - Poem by Deepti Pandey

 

"हे धरा के पुत्र तुमको आज माटी है पुकारे ,

आत्मनिर्भर देश का जो स्स्वप्न तुम साकार कर दो ।

चीन की लड़ियो से न तुम घर-द्वार को रौशन करोगे ,

लो शपथ यह आज तुम और यह धरा खुशियों से भर दो ।


तोड़े समझौते थे जिसने पार कर दी सब सीमाएँ, 

आस्तीन का सांप बन कर जो हमे ही डस रहा है ।

सूना आँचल, सूनी मांगें पूछती है इस धरा से ,

चीन सी चीनी सी बातों मे देश क्यू यूँ फँस रहा है।

भेष बदले फिर से देखो आज है आया व्यापारी, 

फिर आजादी दांव पर है क्यू न हमको दिख रहा है ।

माँगता है वीर सरहद पर खड़ा यह वचन हमसे, 

बन स्वदेशी शत्रु के मुंह मे तमाचे आज जड़ दो ।


हे धरा के पुत्र तुमको आज माटी है पुकारे ,

आत्मनिर्भर देश का जो स्स्वप्न तुम साकार कर दो ।

"


Web Title:   Poem by Deepti Pandey , Vayam official blog content

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