"हे धरा के पुत्र तुमको आज माटी है पुकारे ,
आत्मनिर्भर देश का जो स्स्वप्न तुम साकार कर दो ।
चीन की लड़ियो से न तुम घर-द्वार को रौशन करोगे ,
लो शपथ यह आज तुम और यह धरा खुशियों से भर दो ।
तोड़े समझौते थे जिसने पार कर दी सब सीमाएँ,
आस्तीन का सांप बन कर जो हमे ही डस रहा है ।
सूना आँचल, सूनी मांगें पूछती है इस धरा से ,
चीन सी चीनी सी बातों मे देश क्यू यूँ फँस रहा है।
भेष बदले फिर से देखो आज है आया व्यापारी,
फिर आजादी दांव पर है क्यू न हमको दिख रहा है ।
माँगता है वीर सरहद पर खड़ा यह वचन हमसे,
बन स्वदेशी शत्रु के मुंह मे तमाचे आज जड़ दो ।
हे धरा के पुत्र तुमको आज माटी है पुकारे ,
आत्मनिर्भर देश का जो स्स्वप्न तुम साकार कर दो ।
"
Web Title: Poem by Deepti Pandey , Vayam official blog content
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