"संकल्प लो कि अपने धन से ना भरोगे शत्रु की झोली,
इस दिवाली जला ही दोगे कपटी चीन के व्यापार की होली ।
याद करो सन 62 में हर भारतीय रोया था,
भारत मां के निर्मल दामन का एक टुकड़ा खोया था,
उस काली रात में ना कोई राष्ट्रभक्त सोया था,
सशक्त सेना की मजबूरी पर बच्चा बच्चा रोया था ,
फिर सत्ता के सियासी दांवपेच से राष्ट्रभक्ति थी हार गई,
भारतभूमि के इतिहास में फिर एक रात भयानक
जुड़ गई ।
याद करो उन वीरों को देश के लिए जो बलिदान हुए,
अपना घर परिवार छोड़कर जो भारत मां के लाल हुए।
कितने ही प्रयास किए चीन ने, भारत की भूमि छीनने को,
अपनी तानाशाही के बल पर, भारतीय अभिमान मिटाने को,
वीर भारतीय जवानों ने प्रत्येक बार था जवाब दिया,
दुश्मन को उसकी ही भाषा में सीमा पर उपहार दिया,
देखकर वीरता भारतीय सैनिकों की, था शत्रु भी चकित हुआ,
सीमा पर ना लड़ पाएगा ज्यादा, इस बात पर आशंकित हुआ,
फिर खेली एक नई चाल, एक नए कपट का खेल हुआ,
अंग्रेजो की तर्ज पर फिर था चीनी व्यापार का खेल हुआ,
सस्ता सामान ना विश्वास हो जिसका भारत में फिर था आने लगा,
धीरे धीरे इस चाल से चीन भारत के भीतर छाने लगा,
अपनी विस्तारवादी नीति का उसने ऐसे है विस्तार किया,
जैैविक व्यापारिक डिजिटल सामाजिक हर हथियार तैयार किया ।
नही कहती मै जाओ तुम और सीमा पर युद्ध लड़ो,
केवल इस युद्ध में तुम संकल्प लो और आगे बड़ो,
संकल्प लो कि अपने धन से ना भरोगे शत्रु की झोली,
इस दिवाली जला ही दोगे कपटी चीन के व्यापार की होली।
शत्रु की चाल में अब और नही हम आएंगे,
इस दिवाली भारत के हर घर में रोशनी लाएंगे,
सस्ती लडियो और फूलझड़ियो से ना इस बार दिवाली मनाएंगे,
अपनी मिट्टी के दीपक से अपना त्योहार मनाएंगे ।
भारतीय त्योहार पर भरेंगे केवल भारत के ही भंडार,
चीनी कंपनियों को इस बार केवल मायूसी का देंगे उपहार,
इस दिवाली गलवान के शहीदो को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे ,
बहुत हुआ, बस और नही अब शत्रु की दीपावली होने देंगे,
स्वदेशी सामान अपनाने का संकल्प आज हमे लेना है,
चीनी सामान के बहिष्कार का संकल्प आज हमे लेना है,
संकल्प लो कि अपने धन से ना भरोगे शत्रु की झोली,
इस दिवाली जला ही दोगे कपटी चीन के व्यापार की होली ।
अपनी मिट्टी के दिए जला, मां लक्ष्मी का करेंगे स्वागत,
भारतीय सामान की मांग बढ़ा, शत्रु की छीन लेंगे ताकत,
भारतीय फूलो और लडियो से ही इस बार घर सजाएंगे,
इसी तरह फिर अपने देश से हम दुश्मन को दूर भगाएंगे,
भारतवर्ष को फिर एक बार सोने की चिड़िया बनायेंगे,
संकल्प लिया कि अपने धन से ना भरेंगे शत्रु की झोली,
इस दिवाली जला ही देंगे कपटी चीन के व्यापार की होली ।"
Web Title: Poem by Vanshika sharma , Vayam official blog content