नारी हूं मैं - Poem by Karngiya Hansa p.

 "कविता

                  नारी हूं मैं।

प्रेम की मूरत और त्याग की सूरत हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

संस्कार और कर्तव्य न भूलने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

पवित्रता और पुरुषार्थ में जीने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

पुरुष की भांति ही कमाने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

दूसरोको खुश रखते खुदको मिटाने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

पापी कहेलाएगी और बोजभी बनने वाली हूं मैं,

                हा, एक नारी ही हूं मैं।

                      हंसा आहिर ‘हंसी '


                              


"



Web Title: Poem by Karngiya Hansa p.


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post