वह नारी है poem by OM Prakash Rajpurohit

 कभी दुर्गा तो कभी अहिल्या बन जाती है कभी जौहर व्रत कर पद्मिनी हो जाती है

निज पुत्र कर बलिदान कभी वह पन्नाधाय बन जाती है
तो कभी शत्रुओ के समक्ष पर्वत सी तन जाती है
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो नभ को छू कर कल्पना बन जाती है ।
संहारक बन कभी असुरो के प्राण हरती है तो कभी ममता की मूरत हो जाती है
रक्त पिपासु होकर रण में शत्रुओ का लहू पी जाती है
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो वैरियों के वक्ष चीरने हेतु लक्ष्मीबाई बन जाती है ।
कभी माँ सीता तो कभी भगवद सी गीता हो जाती है
स्वतंत्रता समर में कभी सरोजिनी तो कभी कृष्ण की मीरा हो जाती है
कभी इंदिरा बन शत्रु के टुकड़े करती है तो कभी सुषमा बन जीवन पुष्प चढ़ाती है
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो बछेन्द्री बन हिमालय को बौना कर जाती है।



Web Title: omprakash rajpurohit


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