वो एक नारी ही है POEM BY - Shrishti Mishra

 वो एक नारी ही है,

जिसके अंदर एक ज़िन्दगी पलता है
और ये समाज उसे ही कमज़ोर समझता है

वो एक नारी ही है,
जो अपने घरों में भी परायी कहलाती हैं,
फिर भी अपने आँखों के आँसू को चेहरे की मुस्कान में बदल कर वो अपने सारे रिश्ते निभाती है.

वो एक नारी ही है,
जो घर में सबसे आखिरी में खाना खाती है,
सबका पेट भरने के लिए,
कभी कभी वो खुद ही भूखी रह जाती है.

वो एक नारी ही है,
जो हर कदम पर अपनों की ख़ुशी के लिए अपना ही मन मारती है,
उम्र बिता देती है फिर भी सबका दिल नहीं जीत पाती है और लोगो की शिकायत ही रह जाती है.

लड़की ही तो है, क्या कर लेगी?
ऐसा सोचने वालों,
अपनी माँ की तरफ देखो,
इसका जवाब वो ज़रूर दे देगी.
जिसे तुम लोग समझते हो अपने कन्धों का बोझ, उसकी हिम्मत देख,
वो इस समाज के ऐसे सोच से लड़ती है रोज़ रोज़.

मत करो ना लड़के और लड़कियों में भेद,
डॉक्टर तो दोनों ही है, पहन कर कोट सफ़ेद.
मत समझो ना किसी को किसी से भी कम,
चाँद तक पहुँच गयी है लड़कियां,
कब समझोगे कि कितना है उनमें दम.

नहीं चाहिए बस में कोई लेडीज सीट,
कोई रिजर्व्ड केटेगरी, या किसी भी तरीके का अपमान,
कुछ चाहिए तो है वो थोड़ी इज़्ज़त और थोड़ा सम्मान.

- सृष्टि मिश्रा



Web Title: Shrishti mishra


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post