डिजिटल उपनिवेशवाद- Article by Shyam Pratap Singh on Digital Colonialism

 

"""उपनिवेशवाद"" क्या है : - 


किसी उन्नतशील और शक्तिशाली राष्ट्र के द्वारा किसी अन्य विकासशील देश जो प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होता हो , उस पर अपना राजनीतिक और आर्थिक नियंत्रण स्थापित करना ही ""उपनिवेशवाद"" कहलाता है।


उदाहरण के तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में जब आगमन हुआ था तो हमको क्या परिणाम भुगतना पड़ा , इससे हम भलीभांति परिचित हैं।

जैसे उनकी नीति ""फूट डालो और राज करो"" की थी आज वही नीति डिजिटल रूप में हम आप सभी के साथ प्रयोग में लाई जा रही है।

चाहे वह विदेशी एप्स के द्वारा किया जा रहा हो या विदेशी कंपनियों के द्वारा।


~ कारण क्या है : -


हम सभी इस आधुनिक युग में अधिक से अधिक आधुनिक होना चाह रहे हैं , और इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए हम उन सभी विदेशी कंपनियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं , जो अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए आपको उचित सुविधा प्रदान करती हैं किंतु इस माया जाल में फंसते हुए हम यह भूल जाते हैं कि वही विदेशी कंपनियां हमारे निजी जानकारियों को भी एकत्रित किया करती हैं और आगे चलकर ऐसी खबरें निकल कर आती हैं कि हमारे ही डेटा को हम से ही चोरी करके व्यवसाय किया जा रहा है।


उदाहरण के तौर पर हमारे भारत सरकार ने हाल ही में चीन के 59 एप्स को बैन किया , उसके बाद पुनः कुछ और एप्स को बैन करके इस धांधली के कारोबार को कम करने के लिए उचित कदम उठाया।

जो कहीं ना कहीं यह साबित करता है कि हमारी निजी जानकारियों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।


एक व्यक्तिगत उदाहरण देता हूं जो मेरे साथ घटित हुआ कि मैंने इंस्टाग्राम पर वीर शहीद राजगुरु को

श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक पोस्ट किया। पर कुछ ही क्षणों में मेरे उस पोस्ट को इंस्टाग्राम ने यह कहकर डिलीट कर दिया कि आपने हमारे कम्युनिटी गाइडलाइन का उल्लंघन किया गया है जिसे कुछ लोगों के द्वारा रिपोर्ट किया गया था। पर उसी इंस्टाग्राम पर हमारे ही संस्कृति को अपमानित करते हुए हमारे हिंदू देवी देवताओं के बारे में अश्लील बातें पेश की जाती हैं और फॉरवर्ड की जाती है जो इंस्टाग्राम के कम्युनिटी गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं करता है। तो यहां पर समझने वाली बात सिर्फ इतनी सी है कि आप कहां पर क्या बोलोगे और वह सही है या गलत इसका भी मानक आप स्वयं नहीं तैयार करोगे बल्कि कोई दूसरा तैयार करेगा।


ऐसी स्थिति में हम जहां पूर्ण रूप से अपनी बात को रखने के लिए आजाद हैं वहां पर भी हमारे सही कथन को दबा दिया जाता है।


अब बात करते हैं प्रमुख कारणों की जो डिजिटल उपनिवेशवाद को बढ़ावा देता है - 


1. अपने देश के स्वदेशी उत्पादों पर भरोसा ना कर के विदेशी उत्पादों पर निर्भर रहना।


2. अपनी मानसिकता इस तरह से बना लेना कि अगर मुझे ₹5 का सामान ₹2 में मिल रहा है तो मैं ₹2 वाला ही लूंगा भले ही वह किसी विदेशी कंपनी द्वारा बनाया गया हो।


3. जहां हमारा भरपूर मनोरंजन होता हो वहां पर अपनी सारी निजी जानकारियों को अपडेट करके उस मनोरंजन के साधन का समुचित उपयोग करना , भले ही वह किसी विदेशी कंपनी द्वारा बनाया गया हो।


~ विदेशी कंपनियों पर बिना किसी सुरक्षा के निर्भर रहना गलत क्यों : - 

 

यूरोपीय यूनियन में डाटा के संरक्षण के लिए उचित कानून व्यवस्था की गई है , जिसमें कंपनी पर 4 % तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और 2017 के रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ गूगल पर 70 हजार करोड़ और फेसबुक पर 890 करोड़ का जुर्माना लगाया गया।

चीन देश में भी गूगल , फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों को पूरी तरीके से ब्लॉक कर दिया गया है , जिसका फायदा चीन की स्थाई लोकल कंपनियों को मिला और जिससे चीन का डेटा उनके ही देश में संरक्षित रहता है।


जो साबित करता है कि अगर हम इसके खिलाफ कोई उचित कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम भी डिजिटल रूप से गुलाम हो जाएंगे।



~ डिजिटल उपनिवेशवाद से बचने के उपाय : -


1. ऐसी तकनीक का विकास हो जिसके माध्यम से उपयोगकर्ता को यह सुविधा हो कि वह अपने डेटा को कंट्रोल कैसे कर सकता है।


2. ग्रामीण इलाकों में भी साक्षरता अभियान चलाया जाए जिसके माध्यम से डिजिटल उपनिवेशवाद को समझा जा सके।


3. अपने देश और लोगों के डेटा की सुरक्षा के लिए भारत में उचित कानून को बनाया जाए।


निष्कर्ष - इस प्रकार देखा जाए तो डिजिटल उपनिवेशवाद बिना किसी बल प्रयोग के हमारी मानसिक स्थिति पर इस प्रकार प्रभाव डालता है कि हम स्वयं अपनी निजी जानकारियों को संरक्षित नहीं रख पाते हैं और सक्षम होते हुए भी विदेशी कंपनियों पर पूर्णतया निर्भर हो जाते हैं।

जिसके लिए आवश्यक है कि उचित कानून का प्रबंध किया जाए और स्वदेशी उत्पादों का समुचित उपयोग एवं विकास किया जाए।

जिसके माध्यम से हम ""आत्मनिर्भर भारत"" के संकल्प को बहुत जल्द पूर्ण कर सकेंगे।


धन्यवाद !


लेखक - श्याम प्रताप सिंह














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Web Title: Article by Shyam Pratap Singh on Digital Colonialism 


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