कविता का शीर्षक -''राष्ट्र अब राजपथ पर नारीशक्ति को दिखात है''
भाषा से प्रेम नहीं
नीतियों में राष्ट्र नहीं
ऐसी आजादी को
देश ढो़त जात है
न आचार, न विचार
न रीति, न त्यौहार
ऐसी सभ्यता को
आधुनिकता कहो जात है
मन में राष्ट्र द्वेष
जिव्या में जहर भरे
हिन्दी के नाम से
शरम इन्हें आत है
टूटी-फूटी अंग्रेजी बोले
इठलाई के बाँधे टाई
माँई और बाबूजी के
परिधान पे लजात है
कौन सी सीख सीखे
बेटा बाबूजी को भूल चले
फलाने को बेटा
अंग्रेज भओ जात है
वेद व्यास पढ़े नहीं
गीता की कौन कहे
रीति-नीतियों पर
घृणा इन्हें आत है
हैलो मोम हॉय पोप
बोलत है कॉल करे
"बहू" बोले माँ हमें
बुढ़िया सास न सुहात है
कौन सा श्रंगार साज
कैसी विचार धारा
कलयुग की जनरेशन को
शराब बहुत भात है
संस्कृति से टूटा नेता
संस्कारों से दूर जाता
ऐसा मानव अब
समृद्ध कहलात है।
****
होनहार की है बात
वो दिव्यांगता को देता मात
कोई-कोई बेटा
गोल्ड मेडल ले आत है
बेटियों के माँथे रोली
दहेज की प्रथा है तोडी
राष्ट्र अब राजपथ पर
नारीशक्ति को दिखात है।
#D_Arjun
Web Title: Poem by Anuj Dwivedi
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