ये शाम सुहानी लगती है poem by Pradeep Tripathi

 ये शाम सुहानी लगती है

ये रात रूहानी लगती है
"माँ" सिर्फ तुम्हारी बाहों में
पा लू जग की खुशियाँ लेकिन
मुश्कान तुम्हारी बाहों में

जग खोकर सब मिल जाता है
रोता चेहरा खिल जाता है
"माँ" सिर्फ तुम्हारी बाहों में
पा लू जग की खुशियां लेकिन
मुश्कान तुम्हारी बाहों में

अब तो जीवन तुम बिन माँ
थार सी बंजर लगती है
क्या लिखूं तुम्हारे कर्मो को
ये कलम भी फीकी लगती है
ये शाम सुहानी लगती है.....



Web Title: pradeep tripathi


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