प्रियतम के खातिर मत मरना- Divyashri

 

शीर्षक-प्रियतम के खातिर मत मरना


ये प्रेम का बंधन बांध के तुम

जीवन को व्यर्थ नहीं करना

मरना जब हित हो देश का तुम

प्रियतम के खातिर मत मरना


मनमोहक बातो से अपनी

 हृदय घात कर देते है

फिर हंसते हंसते नयनों को 

ये आसू से भर देते हैं


घाव वही अभाव वही है

सदियों का है ये साथ नहीं

मिलकर जो तारे जीवन को

ये इतना बेहतर हाथ नहीं


सब्र करो तो ही अच्छा 

छलियो का साथ नहीं करना

मरना जब हित हो देश का तुम

प्रियतम के खातिर मत मरना


ये जीवन है अनमोल रतन

इससे समझौता ना होगा

"नारी की समर्पण शक्ति"


लङती है नारी सभी हालातों से, 

हँसते हंसते हर ग़म वो सह जाती है, 

कह ना दे कमज़ोर कोई जानकर, 

आंसुओं को अपने वो छिपाती है,

पूरा दिन चाहे खुद भूखी रहकर

 वो पकवान तुम्हें खिलाती है,

यूँ ही सारा प्यार वो लुटाकर, 

ख़ुद कुछ तन्हा सी रह जाती है, 

वाह धन्य है ये नारी भी .. 

सिद्दत से हर त्यौहार भी मनाती है.. 

हाथों मे मेहंदी, पैरों में आल्ता,

मांग में सिंदूर, गले में मंगल सूत्र, 

 सब कुछ पूरी जिंदगी बस पति के नाम का.. 

और अपने पति को ही बस अपना बताती है..

आए जब विपत्ति जो उसके अपनों पर, 

खोखले समाज से भी वो टकरा जाती है.. 

अनगिनत परिस्थियों से लड़कर , 

अपने अस्तित्व को भूमिका में लाती है..

दुनिया की इस रंगीन भीड़ में, 

भूल जाते हो तुम जिसको , 

 उस नारी के अधिकार में, 

यहां कमी क्यूं रह जाती है?? 



फिर भी दुनिया के सारे जोक्स. 

उस नारी पर ही बनाए जाते हैं.. 

कहते हैं.. औरत को समझना मुश्किल है.. 🙏 

पर सच तो ये है.. औरत को समझना सबसे आसान है.. 

बशर्ते तुम्हारे अंदर उसे समझने की चाहत हो. 

~दिव्या श्री श्रीवास्तव 



Web Title: Poem by Divyashri


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