सरस्वती के मानस पुत्रों! क्या? पर पीड़ा गा पाओगे Poem by Suneet Saumya

 

सरस्वती के मानस पुत्रों! क्या? पर पीड़ा गा पाओगे।
जीवन पथ के घोर तिमिर में आशा-दीप जला पाओगे।।

यह दुनिया पथ भ्रष्ट हो रही, आगे बढ़कर राह दिखाओ,
जीवन के असली अर्थों का, जन जीवन को भेद सिखाओ,
भले हथेली जल जाएं पर दीप नही बुझने देना तुम,
पन्ना सीता के गौरव को कभी नहीं झुकने देना तुम,
धर्म तुम्हारा है दीपक सा तम से आंख मिला पाओगे।
जीवन पथ के घोर तिमिर में आशा-दीप जला पाओगे।।

जब सच को लिखने बैठोगे, झूठ तुम्हें शापित कर देगा,
कई वर्जनाएं रोकेंगी, मन सब कुछ ज्ञापित कर देगा,
दुनिया तुमको भ्रमित करेगी मन धन वैभव पर अटकेगा,
तन-मन सब बेकल हो करके बस्ती-बस्ती जब भटकेगा,
बाधाओं के कठिन मार्ग पर निर्भय होकर जा पाओगे।
जीवन पथ के घोर तिमिर में आशा-दीप जला पाओगे।।

कुछ अश्लील शब्द चुनकर के महिमा मंडित हो जाएंगे,
कुछ उनको उत्साहित करके खुद ही खंडित हो जाएंगे,
पर तुम कवि की परंपरा हो जन पीड़ा से मुँह मत मोड़ो,
धन वैभव उनको लेने दो तुम सर्वस्व नियति पर छोड़ो,
दुनिया का ऐश्वर्य त्याग कर क्या? कवि धर्म निभा पाओगे।
जीवन पथ के घोर तिमिर में आशा-दीप जला पाओगे।।
© सुनीत सौम्य।


Web Title: suneet saumya


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