"लिखते हो पावन मन कर जिससे
वह चलती कलम तुम्हारी हूं
मैं दुर्गा मैं लक्ष्मी हूं
मैं शक्ति मैं नारी हूं
मैंने मुझ को जन्म दिया और
मैंने ही खुद को पाला है
घर परिवार नहीं छोड़ा और
पूरा संसार संभाला है
प्रेमदीप की जलती लौ हूं
हूं करुणा का सागर भी
मैंने देखे कष्ट कठिन थे
जिनको मुस्का कर टाला है
मैं ममता का मीठा जल हूं
मैं अबूझ किलकारी हूं
मैं दुर्गा मैं लक्ष्मी हूं
मैं शक्ति मैं नारी हूं
मैं आसमान पर उड़ती चिड़िया
पिंजरा मुझको रास नहीं
मुश्किल आए तो सह लूंगी
मैं होती कभी उदास नहीं
मैं मृग चंचल मन में हलचल
मैं झरना मैं नदियां हूं
मैं उत्साह का स्रोत भी हूं
होती कभी निराश नहीं
मत भूलो मैं हूं , तुम मुझसे
मैं जीवन फुलवारी हूं
मैं दुर्गा मैं लक्ष्मी हूं
मैं शक्ति मैं नारी हूं
मैं काली का कोप भी हूं
मां दुर्गा की छाया हूं
मैं ब्रह्मा की पहली रचना
लक्ष्मी से उपजी माया हूं
मां शीतला की शीतल कन्या
अन्नपूर्णा कहलाती हूं
भिन्न गुणों को सज्जित करती
पर मामूली काया हूं
दुष्टों का संहार करूं तो
करती सिंह सवारी हूं
मैं दुर्गा मैं लक्ष्मी हूं
मैं शक्ति मैं नारी हूं
मत सोचो मैं पुष्प सी कोमल
मत पूछो क्या मेरी हद है
नापना चाहो अगर हद मेरी
दूर क्षितिज मेरी सरहद है
यहां वहां और कहां-कहां
आने से मुझको रोकोगे तुम
बढ़ते जाना जिद है मेरी
बढ़ते रहना मेरा मद है
छोटी सोच लिए फिरते हो
छोटी सोच पे भारी हूं
मैं दुर्गा मैं लक्ष्मी हूं
मैं शक्ति मैं नारी हूं"
Web Title: Poem by Anshi Agnihotri
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