"सुबह की मीठी धूप सी
सुकून भरी गीत वो
वो अरुणिमा है शाम की
हर सुख -दुख की मीत वो!!
वो शक्ति की प्रतीक है
वो सृष्टि का वरदान है
वो आराधना की मंत्र है
वो कलमा, वो अज़ान है!
उसके लाखों रूप है
वो हर रूप में समाई है,
मां,बहन ,बेटी कभी तो
पत्नी बन परछाई है!
संसार की विस्तार वो
सृजन कभी संहार वो,
वो नारी है, नारायणी है
वो कला है कल्याणी है!
धरा सी सहनशीलता
गगन सा विशाल वो,
वो भक्ति है भगवान की
करुणा की मशाल वो!
आराधना कर साधना कर
मत उसे ललकार तूं
प्रलय फिर हर ओर होगा
मचेगा हाहाकार यूं!
अस्मिता पर चोट वो
सहन न करने पाएगी
वो है दुर्गा जो कभी तो
काली भी बन जाएगी!!
वो जन्म दे जननी बनी
वो तुझे पालती है,
भवानी बन भव पार करती
वो तुझे तारती है!!
वो करती है जो ठानती है
हर बला वो टालती है
हर मुश्किलों से निकालती है
वो हार कहां मानती है
वो हार कहां मानती है...
अर्चना रॉय"
Web Title: Poem by Archana Roy
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