फूल नहीं मिलते पथ पर! poem by Harsh Pandey

 फूल नहीं मिलते पथ पर!


बधांए ही मिलती हैं ,
फूल नहीं मिलते पथ पर,
कोई योद्धा हुआ नहीं ,
समर में बैठे बैठे रथ पर,
सबको लड़ना पड़ता है,
मन को बदलना पड़ता है ।
हुया भयभीत अर्जुन भी था रण पर,
फिर भी लड़ा उसने अंतर्मन में प्रण कर।
उठा शस्त्र और तू भी युद्ध कर,
मन को जागृत कर प्रबुद्ध कर।
यह समर भूमि , यह अंबर यह भूतल तेरा है,
दो दिवस का अथक परिश्रम आने वाला कल तेरा है।
यह अग्नि वायु मिट्टी जल तेरा है,
इन सब को राख करें वह भुजबल तेरा है।
कब तक मुस्काएगा ,बंधा नेह पाश में,
कर वो जो राम ने किया वनवास में।
तेरे ही एक पूर्वज ने ,तीन कदम में जग नापा था,
एक कदम में धरती नापी ,एक कदम में अंबर नापा था।
कर याद उन ईरानी, यूनानी को ,
पोरस के जवाब और झेलम के पानी को।
तू बिंबिसार, अजात शत्रु का शौर्य देख,
युद्ध-बुद्ध देखना है तो चन्द्रगुप्त मौर्य देख।
तू शंकर का क्रोध देख, परशुराम का प्रतिशोध देख ,
देख हिमालय , विंध्य देख, गंगा यमुना सिंधु देख।
तू गार्गी, कात्यानी,सीता देख,
शिव को गरल पीता देख ।
तू देख सौर्यवान भारत देख,
लहू की बुनियाद पर बनी इमारत देख ।
तू भारत का ज्ञान विज्ञान देख ,
दधीचि कर्ण का महादान देख ।
तू गांधी का त्याग देख ,
भगत सिंह के हृदय की आग देख।
तू देख एकता साथ देख ,
तानसेन की राग देख ।
तू अशोक देख , पृथ्वीराज चौहान देख ,
देख, देख मेरी आंखो से भारत महान देख।




Web Title: Harsh Pandey


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