एक कवि की बात सुनो poem by Nisha Chaturvedi

 एक कवि की बात सुनो ,गुनगुना ना जोर से

क ख ग घ शब्द निराले, है क्या भाई इनका मोल
चलो बताओ नाम तुम उसका , है कौनसी फिर वो बोली
एक एक अक्षर इसका सुंदर, एक गर ,दूजा मिल जाए निकलेगा भिन्न , भिन्न सा अर्थ
एक कवि की बात सुनो, गुनगुना ना जोर से
निर्मल निर्मल प्यारी भाषा ,जो ये कहलाए है
चलो बताओ नाम तुम उसका, है कौनसी फिर वो बोली
इसके बिना अधूरी बोली ,जब बोलो तब मीठी बोली
आया गुस्सा बडा जोर से ,तब बोले हम कौनसी बोली
एक कवि की बात सुनो ,गुनगुना ना जोर से
आया दुनिया में छुटकू तू ,तब बोले तूने क्या शब्द
तेरे शब्द बड़े अटपटे, भूल गया तू वो क्या बोली
याद नही तो तुझे बता दू , अ अ अ अ तेरी बोली
रोता जब तू जोर जोर से ,ऊ ऊ ऊ ऊ कर मुंह खोले
एक कवि की बात सुनो, गुनगुना ना जोर से
चलो बताओ नाम तुम उसका , हैं कौनसी फिर वो बोली
बड़ी अटपटी बडी चटपटी , सुनकर मन हो जाता होली
प्यार करे परिवार को अपने ,तब तूने बोली क्या बोली
न अंग्रेजी, न ही उर्दू, न फारसी ,फिर बोली तूने क्या बोली
याद नही तो तुझे बता दू ,प्यारे पापा ,प्यारी मम्मी इन शब्दों की तेरी बोली
एक कवि की बात सुनो ,गुनगुना ना जोर सेे
चलो बताओ नाम तुम उसका, है कौनसी फिर वो बोली
हो उदास मन बैठा तेरा ,तब तूने मन में क्या बोली
बडी अलौकिक ,बडी ही सुंदर, थी तेरी कुछ ऐसी बोली
नही याद तुझे वो भाषा , पर इस भाषा में थी तेरी बोली
बड़ा आनंदित होकर बोले , सुनकर जो आंदितमय हो ,इतनी प्यारी तेरी बोली
एक कवि की बात सुनो,गुनगुना ना जोर से
चलो बताओ नाम तुम उसका, है कौनसी फिर वो बोली
इतनी सीतल इतनी प्यारी , सुनकर जिसकी छाती फूले
हिंदी है वो मेरी बोली
न कभी भूलेगा ,न भूल पायेगा, ये है हिंदी
कांपता है अच्छा- अच्छा ,कड़क- कड़क हो जब तेरी बोली
अनमोल रत्न मिला है हमको, भूल सके न हम कभी जिसको
हिंदी ही पहचान हमारी, हिंदी ही आधार है
जियो गर्व और शान से, क्योंकि हिंदी हमारा अभिमान है
जय हिंद जय भारत।।



Web Title: Nisha Chaturvedi


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