मै आजादी,
वैसे तो हिन्दुस्तान में आए,कई अरसे हुए मुझे,
मगर समाज ने बाँट रखा है मुझे,
अपने-अपने दायरों में,
किसी के लिए मेरे मायने,
घर की चारदीवारी में दफन हो जाते हैं।
और कई हैं,
जो अपने ख्वाबों तक,
मेरे जरिए जाना चाहते हैं।
मै उनकी खुशियाँ बनकर,
आना चाहती हूँ अब इस देश में,
जिनके सामने मुझ तक पहुँचने से पहले,
अभी कई मजहबी दीवारें खडी़ हैं।
अब धर्म के नाम पर,
बाँट रखा है मुझे जिसने,
कभी उसी भारत की जनता,
मेरे लिए एक साथ लडी़ है।
आना चाहती हूँ मै इस बार कुछ अलग वेश में,
एक नया उजियारा दिखे इस वर्ष मेरे देश में,
मै गीता और कुराण दोनों पढना चाहती हूँ,
पुरुष-नारी में मै नहीं कोई सामाजिक भेद चाहती हूँ।
मैने एक हिन्दू के साथ मस्जिद,
और मुस्लिम के साथ मंदिर का ख्वाब देखा है।
मिट जाए बस वो हर एक लकीर,
जिसे कुछ कहते हैं धार्मिक तो कुछ,
जातिगत रेखा है।
आने वाले हर साल मै अपना हर दिन,
हर धर्म के साथ मनाना चाहती हूँ।
धर्म-जाति के इस भेद से काफी परे,
मै हर जश्न में पूरा हिन्दुस्तान चाहती हूँ।
-निष्ठा गुप्ता
Web Title: Nishtha gupta
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