नारी शक्ति poem by Ritika Kumari

 

( नारीशक्ति)
घर से जब वो निकलती है ,
मर्यादा साथ लिए वो चलती है |
कभी बेटी, कभी बहन ,कभी पत्नी, कभी मां ,
हर किरदार में खुश वो रहती है|
कुछ सपने वो भी संजोती है,
कुछ पुरे वो कर लेती है,
पर कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ देती है !
हर रीति रिवाज में वो बंधती है,
सबकी भावनाओं का ख्याल भी वो रखती है,
किरदार अपना वो हर वक्त बदलती है ,
कभी चंचल बन नदियों की वो बहती है ,
कभी सहनशीलता धरती सी वो खुद में भर लेती है!
ना रुकती है ना थकती है
वक्त के साथ हाथ मिलाकर वो चलती है ,
वो नारी ही है साहब !
जो अपनी मर्यादा का हर वक्त ख्याल रखती है,
वो नारी ही है जो हर कष्ट को हंस कर सहती है
मगर यह दुनिया की सोच है जो उसके लिए कभी नहीं बदलती है!


Web Title: Ritika Kumari


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