🇮🇳एक कविता देश के नाम🇮🇳
है वक़्त ये कठिन मगर, ये वक़्त भी कट जाएगा,
छाई अंधेरी रात है, सवेरा भी तो आएगा..
पैदा हुए जिस वक़्त तुम, हिन्दू न मुसलमान थे
ईश्वर ने जब रचा तुम्हें,तुम सिर्फ इक इंसान थे
क्यों ढल रहे हो इस तरह तुम झूठ के संसार में
मौका मिला है बढ़ चलो मानवता के उद्धार में
चलो उठो थको नहीं, बाकी अभी ये जंग है
छोडो उसे जो भी हुआ, जीवन ये इक पतंग है
तुम डोर उसकी थाम लो, के दूर आसमान है
मिलकर चले जो साथ हम, हर जंग फिर आसान है
वो है जो हित मे देश के, बस वो ही काम तुम करो
दिल से रहो मिलके सदा, पर घर मे अपने तुम रहो
है वक़्त ये कठिन मगर ये वक़्त भी कट जाएगा
छाई अंधेरी रात है, सवेरा भी तो आएगा
छिपे छिपे से हैं सभी, घुटे घुटे से हैं सभी
क्यों छिप रहे, क्यों घुट रहे, क्यों मिलके हम न मिल रहे
क्यों धर्म और अधर्म के कसीदे सब ही पढ़ रहे
ये जंग अल्लाह की नही, न है किसी भगवान की
ये जन्मी है इंसान से, ये जंग है इंसान की
इस मातृभूमि का... अब ऋण चुकाना है हमें
जीवित हैं लाल इसके, इसको बताना है हमें
है धर्म अब अपना यही, इस देश को बचाना है
इंसान की ही ये जंग है, इंसान को ही जिताना है
है वक़्त ये कठिन मगर ये वक़्त भी कट जाएगा
छाई अंधेरी रात है, सवेरा भी तो आएगा
पौधों से अपने तुम मिलो, पेड़ों से बात तुम करो
बगिया में अपनी घूम लो, फूलों को थोड़ा चूम लो
बच्चों की खिलखिलाहटें, चिड़ियों की चहचहाहटें
माँ बाप जो बुज़ुर्ग हैं, उनको मिली हैं राहतें
खुश हैं सभी देखो ज़रा, तुम किसलिए उदास हो
हो खुशनसीब आज तुम जो अपनों के ही पास हो
जो दूर हैं परिवार से वो बात एक जान लें
भगवान 'राम' थे मगर, रहे दूर वो परिवार से
इक माह नहीं, दो माह नहीं, चौदह बरस बनवास के
तुम भी किसी के लाल हो, वो भी किसी के लाल थे
है जिसने भी यह सब रचा, उसीमे मन को साध लो
फिर तुम भी मुस्कुराओगे और वो भी मुस्कुराएगा
है वक़्त ये कठिन मगर, ये वक़्त भी कट जाएगा
छाई अंधेरी रात है, सवेरा ज़रूर आएगा
🇮🇳जय हिन्द। जय भारत।🇮🇳
-ऋद्धि मोहित
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