हिंद के सैनिक poem by Prabhas Chandra Jha

 

हिंद के सैनिक

उठो हिन्द के सैनिक ,
मातृ भूमि करे पुकार
वहशत के दहशत में है , चारो ओर हाहाकार

उतर में हिमालय
दक्षिण में सागर करे चीत्कार
उठो हिंद के सैनिक ,
मातृ भूमि करे पुकार

कश्मीर के बर्फीले मौसम हो
थार का हो रेगिस्तान
सियाचिन की दीवारों पर
गूंजे एक ही नाम हिंदुस्तान हिंदुस्तान हिंदुस्तान

उठो हिंद के सैनिक
मातृ भूमि करे पुकार .
सिंधु की धारा चरणों को रही पखार
उठो हिंद के सैनिक
मातृ भूमि करे पुकार .
भारत की वसुंधरा ने लाखो वीर जने है
मस्तक धर से अलग हुए फिर भी धर लड़े है


हल्दी घाटी की भूमि हूं , कुरुक्षेत्र का रण हूं
महारथी हूं कर्ण सा ,कृष्ण सा धर्म प्रखर हूं
स्वयंवर में मृत्यु को जीते ऐसा रणधीर अमर हूं

बचपन की लोरी में महाराणा, छत्रपति को सुना है
जैवंता , जीजा बाई ने मुझको जना है
सुनो हिंद के सैनिक , मातृ भूमि करे पुकार
सिंधु की धारा चरणों को रही पखार

बुध का उपदेश सुना है मैने
चन्द्र सा रण कोसल हूं
राम चरित्र मानस सा मर्यादित
रश्मिरथी दिनकर हूं
#प्रभाष चन्द्र झा


Web Title: prabhas chandra jha


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