जा रहे हो तो इस घर की हालत भी देख लो
माँ कहते हुए रो पड़ी मेरी सूरत भी देख लो
क्यूं नहीं आवाज़ करती आती जाती हवाएं
ज़रा तुम इस खंडहर की ईमारत भी देख लो
ढह गयी है छत और भगवान नींचे दब गए हैं
तुम एक बार मेरे राम की मूरत भी देख लो
ये मेरे साथ रहते हैं मुझे तन्हा नहीं होने देते
मेरे बेटे इन परिंदो की शरारत भी देख लो
बस यही इल्तिज़ा है मुझे छोड़ कर ना जाओ
वरना मुझे कफ़न की है जरूरत भी देख लो
जाते वक़्त इस बात का भी ध्यान रखना राजन
आख़री बार माँ के पांव में जन्नत भी देख लो
- राजन सिंह
Web Title: Poem by Rajan Singh
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