"नारी शक्ति
हे अप्रतिम शक्तियों की पुज ,
तू सुसुप्त शक्तियों को कर जाग्रत ,
रख स्मरण तू है . राष्ट्र निर्माण का सेतु , चिर अनादि , अनन्त सृष्टि का हेतु ,
तेरी कोख में इन्सानियत पली ,
तेरे प्रयत्नों से प्रेम की ज्योति जली ,
फिर क्यू तेरी आँखें उनींदी सी तेजस्विता से महरूम है ,
फिर क्यूं तेरे उच्च स्वप्न शोषण की कालिख में गुम है ,
अश्वमेघ की शक्ति होकर भी तू क्यों अश्रु बहा रही ,..
त्याग , तितिक्षा , तप की मूर्त होकर भी तू कोख में मारी जा रही ,
क्यू तू रेत के घरौंदे बना , अपना वजूद तलाशती रही ..
क्यूं चीर हरण की कालिमा तेरे पद चिन्ह मिटा रही ,..
गर तू सुखद भविष्य को देना चाहती वर्तमान आधार ,
सुनहरे बुने स्वप्नों को वर्तमान में देना है अंजाम ,
तो त्याग तन्द्रा , त्यजू प्रसाद ,
कर राष्ट्र में नारी क्रांति का ...शंखनाद , रणचण्डी बन ताकि दहक उठे दावानल , क्षत्राणी आदि स्वरूपा बन ताकि मच जाए हलचल ,
झांसी सी मर्दानी बन , इन्दिरा सी स्वाभिमानी बन ,
रूक , ना , रूक ना . अपनी ज्वाला बढ़ाती ही चल . ..
पी.टी. ऊषा सी उर्जस्विनी बन कल्पना सी तू उड़ान भर ..
नारी जयघोष का परचम क्षितिज पर फहराती चल ,..
दे सके तो दो . नूतन परिवर्तन गर राष्ट्र . जग , समाज को , ....
तभी मिल सकेगी सही परिभाषा , नारी के स्वाभिमान को.....
रमा मल्होत्रा"
Web Title: Poem by Rama malhotra
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