इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा- Sahiba Rab

 !!! इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा !!!


चारों तरफ़ फैला हैं दहशत का कोहरा, 

गुरबतों ने मचाई हैं इस क़दर धूम,

हर माथे पर सज़ा हैं सिलवटों का सेहरा,

काली रात का हैं साया, छिप गया कहीँ सूरज सुनेहरा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा...


कहीँ महँगाई हैं खा रही, तो कहीँ भुखमरी का भयानक अँधेरा,

कहीँ घनघोर घटा, कहीँ बाढ़, तो कोई प्यासा हैं मरा,

कहीँ डाका, कहीँ डक़ैती, हरतरफ डाकुओं का डेरा,

कहीँ लूट की खुली छूट, कोई लुटा हैं, तो कोई लुटेरा,

कहीँ चीत्कार, कहीँ बलात्कार, हर तरफ़ पापियों का पेहरा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा...


सीमापर देश बचाने की ख़ातिर बेवज़ह लढ़े हैं मेरा भाई,

गैरों से क्या लढना, दहशत घर में अपनों ने मचाई,

रक्षक बना हैं भक्षक, काटे हैं कलेजा निर्मम कसाई,

मरदुदों ने खून से हैं मेहंदी हाथों में रचाई,

अंधा हैं क़ानून, साथ ही गूँगा भी और बेहरा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा...


कहीँ बिकते हैं जिस्म, कहीँ लुटती हैं इज्ज़त,

कोई बेचे हैं ईमान, बेईमानों को हरवक्त पैसों की क़िल्लत,

हवस की पुजारी यहाँ, भगवान हैं हैवानियत,

मज़बूर हैं हर इंसान और शर्मिन्दा हैं इंसानियत,

बर्बाद कर गया घर मेरा यह शैतान का फेरा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा...


मैं अब भी जलती हूँ दहेज़ की ख़ातिर,

मैं अब भी मरती हूँ वंश की ख़ातिर,

मैं अब भी लुटती हूँ हवस की ख़ातिर,

मैं अब भी बिकती हूँ पैसों की ख़ातिर,

नर-नारी एकसमान, बेफ़िजूल हैं लगाना यह नारा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा...


ओ मेरे बापू, ओ मेरे चाचा, ओ मेरे आझाद भाई,

ओ मेरे सेनापती, ओ मेरी दीदी प्रीती, ओ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई,

क्यूँ दी थीं क़ुर्बानी, ख़ून बह रहा बनकर पानी, बद से बद्तर हैं हालात,

क्यूँ किया था आबाद, जब होना था बर्बाद, हरतरफ हैं रक्तपात,

जाये तो जाये कहाँ, यह देश अब ना तेरा ना मेरा,

इस आज़ादी में दम घुटता हैं मेरा!!!


- साहिबा रब



Web Title: Poem by Sahiba Rab


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